जशपुर/सन्ना: जशपुर जिले का सन्ना तहसील क्षेत्र, जो अपनी हरी-भरी मिर्च की पैदावार के लिए जाना जाता है, इस साल किसानों के लिए अभिशाप बन गया है। मिर्च की बंपर पैदावार के बावजूद, गिरती कीमतों ने किसानों को गहरे संकट में धकेल दिया है, जिससे वे अपनी लाखों की फसल को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे बाजार की अस्थिरता और सरकारी सहायता की कमी किसानों के जीवन को तबाह कर सकती है।
एक वार्षिक आय का स्रोत, अब घाटे का सौदा
सन्ना तहसील में हर साल सैकड़ों एकड़ जमीन पर मिर्च की खेती की जाती है। यहां की मिट्टी और जलवायु मिर्च उत्पादन के लिए अनुकूल है, और यह क्षेत्र के हजारों किसानों के लिए आय का एक मुख्य स्रोत रहा है। स्थानीय किसान पारंपरिक तरीकों से उन्नत किस्मों की मिर्च उगाते हैं, जिससे अक्सर अच्छी पैदावार होती है। हालांकि, इस साल, रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन ही किसानों के लिए मुसीबत बन गया है।

कीमतों में भारी गिरावट: लागत भी नहीं निकल पा रही
किसानों के अनुसार, इस साल प्रति एकड़ मिर्च का उत्पादन उम्मीद से कहीं अधिक हुआ है। लेकिन बाजार में मिर्च की कीमतें इतनी गिर गई हैं कि किसानों को 50 पैसे से लेकर 2 रुपये प्रति किलोग्राम तक का भाव मिल रहा है। जबकि, मिर्च तोड़ने वाले मजदूरों को ही 5-6 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मजदूरी देनी पड़ती है। इसके अतिरिक्त, खेत से मंडी तक मिर्च पहुंचाने का परिवहन खर्च भी किसानों को वहन करना पड़ता है। ऐसे में, किसानों के लिए मिर्च को तोड़ना और बेचना आर्थिक रूप से अलाभकारी हो गया है।
एक किसान, रामलाल साहू ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा, “हमने अपनी पूरी पूंजी और मेहनत इस फसल में लगाई थी। अच्छी पैदावार देखकर हमें उम्मीद थी कि इस बार अच्छा मुनाफा होगा, लेकिन अब आलम यह है कि हम मिर्च तोड़ने का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे हैं। जो मिर्च हम 50 पैसे में बेच रहे हैं, उसे तोड़ने में ही 6 रुपये लग जाते हैं। इससे अच्छा है कि हम उसे खेत में ही छोड़ दें या फेंक दें।”

खेत से सड़क तक बर्बादी का मंजर
कई किसान अपनी फसल को मंडी तक ले जाने का खर्च बचाने और और अधिक नुकसान से बचने के लिए, अपनी ताज़ी मिर्च को खेतों में ही सड़ने दे रहे हैं या सड़कों पर फेंक रहे हैं। कुछ किसान अपनी मिर्च को मवेशियों को खिलाने को भी मजबूर हैं। यह मंजर न केवल किसानों के दर्द को बयां करता है, बल्कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी को भी दर्शाता है।
कर्ज का बोझ और भविष्य की चिंता
इस आर्थिक मार ने किसानों को भारी कर्ज के बोझ तले दबा दिया है। कई किसानों ने बीज, खाद और कीटनाशक के लिए साहूकारों या बैंकों से कर्ज लिया था। अब जब उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है, तो वे कर्ज चुकाने को लेकर चिंतित हैं। अगले साल मिर्च की खेती करने को लेकर भी किसानों में अनिश्चितता का माहौल है, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं फिर से यही स्थिति न बन जाए। यह उनके बच्चों की शिक्षा और परिवार के भरण-पोषण पर भी सीधा असर डाल रहा है।
सन्ना के लोरो में है मिर्च प्रोसेसिंग यूनिट
जशपुर जिले के पठारी क्षेत्रों में हर साल हजारों हेक्टेयर में मिर्च की खेती होती है. पठारी क्षेत्र के हजारों किसान हर साल मिर्च की खेती करते हैं और मिर्च का बम्पर उत्पादन इस क्षेत्र में होता है. मिर्च के उत्पादन को देखते हुए सन्ना क्षेत्र में 8 साल पहले 1 करोड़ की लागत से मिर्च प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की गई थी. लेकिन 8 साल बाद भी इस प्रोसेसिंग यूनिट में ताला लटका हुआ है और यह प्रोसेसिंग यूनिट सफेद हाथी साबित हो रहा है ।
वहीं आज के बाजार भाव के बात करें तो 8 से 12 रु तक मार्केट रेट है, अलग अलग मिर्च की वेराइटी में भाव का प्रभाव पड़ता है । बीते दिन 3 से 5 रु तथा रविवार को 1से 2 रु मार्केट रेट था ।
