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सूर्य उपासना का महाकुंभ! छत्तीसगढ़ के सबसे ठंडे पठारी इलाकों पंडरापाठ में 36 घंटे का निर्जला व्रत संपन्न, प्रकृति के साथ लोक आस्था का अनूठा संगम





जशपुर, छत्तीसगढ़। प्रकृति के महापर्व और लोक आस्था के प्रतीक छठ पूजा का चार दिवसीय अनुष्ठान मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 को जशपुर जिले में सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की धरती पर बसे “पहाड़ों की रानी” कहे जाने वाले जशपुर के प्राकृतिक सौंदर्य और अटूट आस्था का अद्भुत संगम था।


जिले के सबसे ठंडे और रमणीय माने जाने वाले पठारी क्षेत्र पंडरापाठ, सुलेसा सना, रौनी और सरधापाठ में इस बार छठ महापर्व की भव्यता देखते ही बनी।


नावापारा से 3 किलोमीटर की ‘श्रद्धा यात्रा’
इस पर्व का सबसे चुनौतीपूर्ण और प्रेरणादायक दृश्य सोमवार, 27 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य के दौरान दिखा। नावापारा से सैकड़ों व्रती और श्रद्धालुजन अपने माथे पर पूजा का सूप (दौरा) लिए लगभग 3 किलोमीटर की दुर्गम पदयात्रा कर अर्घ्य स्थल तक पहुंचे। ये पठारी रास्ते अक्सर ऊबड़-खाबड़ और पथरीले होते हैं, लेकिन छठी मैया के प्रति गहरी निष्ठा और भगवान सूर्य के तेज की कामना ने व्रतियों को बिना थके आगे बढ़ने की शक्ति दी।


स्थानीय ग्रामीण हेमनाथ यादव ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया, “व्रती यहां अर्घ्य देते हैं और रात भर यहीं रुककर छठी माता की पूजा-अर्चना करते हैं। यह यात्रा हमारी आस्था की परीक्षा होती है, जिसे हम हर साल बड़े उत्साह से पूरा करते हैं।”


रात भर गूंजे लोकगीत, हुई छठी मैया की आराधना
संध्या अर्घ्य के बाद, व्रतियों ने 36 घंटे के अपने कठोर निर्जला व्रत को जारी रखते हुए रात भर जलस्रोत के किनारे ही डेरा जमाए रखा। चारों ओर छठ के पारंपरिक लोकगीतों की मधुर धुन गूंजती रही। इन गीतों में जहां सूर्य देव की महिमा का बखान था, वहीं संतान की रक्षा और परिवार के कल्याण के लिए छठी माता से आशीर्वाद की याचना की गई। यह पूरा दृश्य किसी ‘अस्थायी लोक तीर्थ’ जैसा प्रतीत हो रहा था, जो जशपुर के शांत और मनोहारी परिवेश को भक्तिमय बना रहा था।


उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण के साथ संकल्प पूर्ण
मंगलवार, 28 अक्टूबर की सुबह, जशपुर के पहाड़ों पर जब उषा की पहली किरणें पड़ीं, तो घाटों पर आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। व्रतियों ने पानी में खड़े होकर पूरे भक्ति भाव से उगते सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य दिया।


छठ पर्व का धार्मिक महत्व यह है कि इसमें अस्त होते (बीते हुए कल के लिए आभार) और उदय होते (आने वाले कल के लिए ऊर्जा) दोनों ही स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस पवित्र अर्घ्य के बाद व्रतियों ने प्रसाद ग्रहण कर अपने महापर्व का पारण किया, जिसके साथ ही चार दिवसीय कठिन अनुष्ठान संपन्न हो गया।


इस प्रकार, छत्तीसगढ़ का यह ‘पठारी ताज’ जशपुर, एक बार फिर अपनी प्राकृतिक सुंदरता और लोक-आस्था के अनूठे मेल के साथ, छठ महापर्व की दिव्य छटा का साक्षी बना।

नावापरा मे प्रति वर्ष छठ पूजा बड़े धूम धाम से छठ पूजा मनाया जाता है लेकिन के छठ के अभाव के कारण यहां के व्रति , श्रधालू एवं अन्य भक्तो को पूजा अर्चना एवं अर्ग देने मे परेशानी होता है । वही यहाँ के छठ घट हेतु स्थानिय विधायक रायमुनि भगत को लिखित आवेदन दिया गया है। अब देखना यह है की छठ घाट का निर्माण कब तक हो पता है।

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